टैरिफ पर बातचीत शुरू होते ही ट्रंप के ‘वीजा बम’ ने भारत को दे डाला ट्रेड डील से भी बड़ा झटका


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (19 सितंबर, 2025) को H-1B वीजा धारकों पर प्रत्येक साल 1,00,000 डॉलर की अतिरिक्त फीस लगाने की घोषणा की है. ट्रंप के इस कदम से सबसे ज्यादा भारतीय प्रवासी समुदाय के लोगों पर असर होगा, क्योंकि अमेरिका में एक H-1B वीजा धारक का औसत सालाना वेतन करीब 66,000 डॉलर है. ट्रंप का यह कदम अमेरिका की संरक्षणवादी नीति (Protectionist Stance) को भारतीय सामानों से आगे बढ़ाकर सर्विस सेक्टर तक विस्तार देने का पहला बड़ा संकेत है.

डोनाल्ड ट्रंप का यह आदेश ऐसे समय पर सामने आया है जब दक्षिण और मध्य एशिया के असिस्टेंट यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (USTR) ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में नई दिल्ली का दौरा किया था. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के दौरे से ऐसा लग रहा था कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है. वहीं, दूसरी ओर यह बड़ा कदम भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अगले हफ्ते होने वाले अमेरिकी यात्रा के पहले लिया गया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले पर क्या कहते हैं उनके वाणिज्य मंत्री?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से इस बड़े फैसले के ऐलान के बाद अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा, ‘इस फैसले का उद्देश्य बस इतना है कि अब अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियां या अन्य कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को ट्रेनिंग नहीं देंगी. उन्हें पहले सरकार को 1,00,000 डॉलर का भुगतान करना होगा, उसके बाद उन्हें कर्मचारी को भी वेतन देना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘अगर आपको किसी को ट्रेनिंग देना है, तो हमारे देश के बेहतरीन विश्वविद्यालयों से हाल ही में निकले स्नातकों (ग्रैजुएट्स) को ट्रेनिंग दें. अमेरिकियों को ट्रेनिंग दें. बाहरी लोगों के लिए हमारे देश के लोगों की नौकरियां छीनना बंद करें. यही हमारी नीति है और सभी बड़ी कंपनियां भी इस बात से सहमत हैं. हमने उनसे इस बारे में बात भी की है.’

व्हाइट हाउस ने H-1B वीजा प्रोग्राम को बताया खतरा

व्हाइट हाउस ने अपने जारी किए गए नोटिफिकेशन में H-1B प्रोग्राम का इस्तेमाल को देश की सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया. उन्होंने कहा, ‘यह प्रोग्राम अमेरिकी लोगों को साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपना करियर बनाने से हतोत्साहित करते हैं और अमेरिका की इन क्षेत्रों में नेतृत्व वाली भूमिका खतरे में पड़ सकती है.

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